4.75 करोड़ एलिमनी देंगे धनश्री वर्मा को युजवेंद्र चहल, आज होगा कोर्ट का फैसला

क्रिकेट न्यूज़ डेस्क ।। भारतीय क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और उनकी पत्नी धनश्री वर्मा के तलाक मामले में बड़ा सुधार हुआ है। बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, दम्पतियों को तलाक के बाद 6 महीने की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि से छूट दी गई है। माननीय न्यायालय ने फैमिली कोर्ट को युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा की तलाक याचिका पर 20 मार्च तक फैसला करने का निर्देश दिया है, क्योंकि चहल 22 मार्च से इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) 2025 सीजन में भाग लेंगे।
बार एंड बेंच ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, 'बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा के हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के लिए अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को माफ करने के अनुरोध को खारिज करने के फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया है। न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने पारिवारिक अदालत को निर्देश दिया कि वह चहल की आगामी आईपीएल में भागीदारी को ध्यान में रखते हुए तलाक याचिका पर कल तक फैसला करे।
बार एंड बेंच के मुताबिक, दिसंबर 2020 में शादी करने वाले चहल और धनश्री जून 2022 से अलग रह रहे हैं। उन्होंने इस साल फरवरी में बांद्रा फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल करने का फैसला किया। दम्पति ने आवेदन के साथ प्रतीक्षा अवधि माफ करने के लिए भी आवेदन दायर किया। धारा 13बी(2) के अनुसार, पारिवारिक न्यायालय तलाक के लिए आपसी याचिका पर दाखिल होने की तारीख से छह महीने के बाद ही विचार कर सकता है। मामले को सुलझाने और अपने वैवाहिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए दम्पति को कुछ समय दिया जाता है। लेकिन, चूंकि चहल और धनश्री दो साल से अधिक समय से एक-दूसरे से अलग रह रहे थे, इसलिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि इस मामले में प्रतीक्षा अवधि लागू नहीं होती। यह याचिका हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत दायर की गई थी, जो आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करती है।
युजवेंद्र चहल को देना होगा 4 करोड़ 75 लाख का मेंटेनेंस
20 फरवरी को अदालत ने 6 महीने की अनिवार्य कूलिंग ऑफ अवधि को माफ करने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि चहल और धनश्री के बीच सहमति से शर्तों का आंशिक अनुपालन किया गया था। समझौते की शर्तों के अनुसार, चहल अपनी पत्नी धनश्री को 4 करोड़ 75 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने के लिए सहमत हुए। हालांकि, क्रिकेटर ने अब तक सिर्फ 2 करोड़ 37 लाख 55 हजार रुपये ही दिए हैं।
अदालत ने शेष राशि का भुगतान न करने को गैर-अनुपालन का मामला माना, इसलिए कूलिंग ऑफ अवधि के आवेदन को खारिज कर दिया गया। पारिवारिक न्यायालय ने यह निर्णय पारिवारिक परामर्शदाता की रिपोर्ट की जांच के बाद लिया, जिसमें गैर-अनुपालन के मामलों पर प्रकाश डाला गया था।